पटना :: केंद्र सरकार ने आज इस साल के लिए पद्म सम्मान की सूची जारी की है. इसमें बिहार के 7 लोगों को पद्म श्री सम्मान देने का एलान किया है. जानिये वे कौन हैं और क्या रही उनकी उपलब्धि

पटना :: स्व. वशिष्ठ नारायण सिंह बिहार के भोजपुर में जन्मे प्रसिद्ध गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पिछले साल निधन हो गया था. भोजपुर के बसंतपुर के वशिष्ठ नारायण सिंह (Mathematician Vashishtha Narayan Singh) के नाम कई उपलब्धियां रहीं. बचपन से बहुत मेधावी की मुलाकात छात्र जीवन के दौरान ही अमेरिका से पटना आए प्रोफेसर कैली से हुई थी. उनके निमंत्रण पर 1963 में वे कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध के लिए गए. वशिष्ठ नारायण ने ‘साइकिल वेक्टर स्पेस थ्योरी' पर शोध किया. 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बने. उन्होंने नासा में भी काम किया, लेकिन वह 1971 में भारत लौट आए. भारत वापस आने के बाद उन्होंने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में काम किया. वशिष्ठ नारायण ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी. कहा जाता है कि जब नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था। डॉ शांति राय पटना की मशहुर महिला रोग विशेषज्ञ डॉ शांति राय बिहार के सबसे प्रमुख डॉक्टरों में से एक हैं. महिलाओं की बीमारी के साथ साथ बांझपन पर उनके शोध की चर्चा पूरे देश में होती रही है. डॉ शांति रॉय ने सरोगेसी के साथ-साथ इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन उपचारों की पेशकश करके कई मामलों को हल किया है। शांति जैन साहित्यकार शांति जैन का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के आरा शहर में हुआ है, वैसे उनके पूर्वज मूलतः मध्यप्रदेश से बिहार आये थे. उनके जन्म के बहुत पहले ही आरा के आश्रम ‘जैन बाला विश्राम’ में शांति जैन के पिता नौकरी के लिए आये थे. वे आरा के जैन कॉलेज में प्रोफेसर के पद से रिटायर हुई हैं. साहित्य पर पकड के साथ साथ उनकी मधुर आवाज शांति जैन की पहचान रही है. 1970 के दशक में रेडियो पर उनका गाया रामायण बेहद लोकप्रिय हुआ था. जयप्रकाश नारायण जब बेहद बीमार होकर घर पर थे तो डॉ शांति जैन उनके घर जाकर रोज रामायण सुनाया करती थीं. कई पुस्तकों की लेखिका शांति जैन ने बिहार गौरव गान की भी रचना की है।


बिमल कुमार जैन बिमल कुमार जैन बिहार के जाने माने समाज सेवकों में शामिल हैं. फिलहाल वे दधिचि देहदान समिति के महासचिव हैं. इस संस्था के जरिये वे लोगों को मरने के बाद शरीर दान करने को प्रेरित कर रहे हैं. ताकि उनके शरीर के अंग दूसरे लोगों के काम आ सकें. RSS की संस्था भारत विकास परिषद से लंबे अर्से से जुड़े रहे बिमल कुमार जैन ने दिव्यांगों की सेवा के लिए भी सराहनीय काम किया है। श्याम सुंदर शर्मा पटना आर्ट्स कॉलेज के पूर्व प्राचार्य श्याम सुंदर शर्मा राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा, दिल्ली की सलाहकार समिति के अध्यक्ष बनाये गय़े हैं. वे आधुनिक कला दीर्घा समिति में बिहार के पहले कलाकार हैं. श्याम शर्मा बिहार के उन कलाकारों में से हैं, जिन्होंने कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना में काम करते हुए बिहार में दृश्य कला के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. श्याम शर्मा प्रिंट मेकिंग (छापाकला) माध्यम में देश के शीर्षस्थ कलाकारों में गिने जाते हैं। सुजय कुमार गुहा 1940 में पटना में जन्मे सुजय कुमार गुहा ने पुरूषों के जरिये गर्भ निरोधक कार्य में विश्व स्तर का काम किया है. उन्होंने IIT खड़गपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री (B.Tech।) ली, उसके बाद IIT में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री और इलिनोइस विश्वविद्यालय, उरबाना-शैंपेन से एक और मास्टर डिग्री प्राप्त की. बाद में उन्होंने अपनी पीएच.डी. सेंट लुइस यूनिवर्सिटी से मेडिकल फिजियोलॉजी में की फिर] फिर उन्होंने सेंटर फॉर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग की शाखा को IIT दिल्ली और AIIMS में स्थापित किया. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से MBBS की डिग्री भी हासिल की. भारत में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के संस्थापकों में से एक प्रो. गुहा को पूरे विश्व में पुनर्वास इंजीनियरिंग, प्रजनन चिकित्सा और जैव स्वास्थ्य में ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल के लिए प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में जाना जाता है. उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 100 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हैं। गैर-हार्मोनल बहुलक आधारित इंजेक्टेबल पुरुष गर्भनिरोधक (RISUG) के आविष्कार और विकास में उनका प्रमुख योगदान रहा है, जिसके लिए अंतिम चरण- III क्लिनिकल परीक्षण चल रहे हैं। रामजी सिंह 1927 में जन्में रामजी सिंह संसद के पूर्व सदस्य और जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति रहे हैं. वे एक प्रख्यात गांधीवादी हैं और उन पर कई पुस्तकों के लेखक हैं. वे गांधीवादी इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज़, वाराणसी, भारत के निदेशक भी रह चुके हैं. उनका जीवन गांधीवादी शिक्षाविद के साथ-साथ एक कार्यकर्ता के रूप में भी रहा है. रामजी सिंह ने महात्मा गांधी को 20 वीं सदी का बोधिसत्व घोषित किया है।


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