शहाबुद्दीन अहमद, कुशीनगर केसरी, बेतिया, बिहार। केंद्र सरकार के द्वारा नागरिकता संशोधन का जो विधेयक लेकर आने वाली है, वह हमारे संविधान के समानता के अधिकार का हनन है। यह उस प्रस्ताव का भी अपमान है जिसमें धर्मनिरपेक्ष शब्द को समाहित किया गया है। यह बात निराधार नहीं कि भारत की धर्मनिरपेक्षता एक मिसाल है तो फिर यहां धार्मिक आधार पर भेदभाव क्यों, निस्संदेह पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश में धर्म के आधार पर गैर मुस्लिमों को प्रताड़ित किया जाता है लेकिन यह बात भी दावे के साथ कहना मुनासिब नहीं है वहां मुसलमान वर्गों के सभी लोगों को वे सभी रियायत मिल रही होगी जिनके वे हकदार हैं।
बता दें कि अभी नागरिकता संशोधन विधायकों को आधी सफलता भी नहीं मिली है लेकिन देश भर में इसका विरोध किया जा रहा है इसलिए सरकार इस विधेयक में जरूरी बदलाव करें ताकि किसी भी धर्म पर इसका विपरीत प्रभाव न पड़े और भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर कोई आंच ना आए किसी धार्मिक आस्था को चोट नहीं पहुंचाई जा सकती है। इसकी संभावना हमारे संविधान में नहीं है ,फिर भी नागरिकता संशोधन के मामले को लेकर जिस तरह वावेला मचा हुआ है। वह भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात नजर आ रहा है, इस तरह देखा जाए तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, अन्य देशों में नागरिकता संशोधन विषय पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं लग रहा है इसका मुख्य कारण यह है कि जो संशोधित कानून पूर्व से बना हुआ है उसी को उस देश के द्वारा लागू किया जाना ही उस देश की प्रगति पर निर्भर करता है।